1. हिन्दी समाचार
  2. उत्तराखंड
  3. Uttarakhand News: टनल विशेषज्ञों ने कहा, सिलक्यारा सुरंग जैसी गलती न करें वैज्ञानिक पद्धति अपनाएं

Uttarakhand News: टनल विशेषज्ञों ने कहा, सिलक्यारा सुरंग जैसी गलती न करें वैज्ञानिक पद्धति अपनाएं

हिमालयन सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट की कॉन्फ्रेंस में सिरकत करने पहुंचे टनल विशेषज्ञ ने कहा कि सिलक्यारा की सुरंग में यदि निर्माण संबंधी चूक नहीं होती और उसे समय पर ठीक कर लिया जाता तो वह हादसा न होता।

By: hindidesk  RNI News Network
Updated:
gnews
Uttarakhand News: टनल विशेषज्ञों ने कहा, सिलक्यारा सुरंग जैसी गलती न करें वैज्ञानिक पद्धति अपनाएं

हिमालयन सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट की कॉन्फ्रेंस में सिरकत करने पहुंचे टनल विशेषज्ञ ने कहा कि सिलक्यारा की सुरंग में यदि निर्माण संबंधी चूक नहीं होती और उसे समय पर ठीक कर लिया जाता तो वह हादसा न होता।

बता दें कि सुरंग निर्माण से जुड़े विशेषज्ञ का मानना है कि सुरंगों का निर्माण वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो हादसे से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सिलक्यारा सुरंग में भी निर्माण संबंधी चूक से हादसा हुआ था। हिमालयन सोसाइटी ऑफ जियो साइंटिस्ट की कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने सुरंग व स्लोप निर्माण के विभिन्न पहलुओं और बिंदुओं पर अपनी बात रख खामियां और अच्छाइयों के बारे में बताया।

बुधवार को ईसी रोड पर स्थित ऑडिटोरियम में कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन कियी गया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा सम्मिलित हुए। उन्होंने कहा कि, पहाड़ में कोई भी प्रोजेक्ट की शुरूआत करने से पहले उस स्थान के बारे में हर विषय पर समीक्षा कर लेनी चाहिए।

कुशल कामगारों की है कमी

इसके बाद सुरंग निर्माण विशेषज्ञ केडी शाह ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि, किस तरह पहाड़ के भीतर सुरंग बनाते समय सावधानियां बरतने की हमें जरूरत है। अनुशासन भी जरूरी है। आगे उन्होंने कहा, आज हमारे देश में इस निर्माण से जुड़े कुशल कामगारों की कमी है। सोसाइटी के उपाध्यक्ष बीडी पटनी ने बताया, आज जल्दबाजी में सुरंगों की डीपीआर ऐसी बनाई जा रही हैं, जो भविष्य में हादसे की घंटी के रूप में उत्पन्न हो रही है।

उन्होंने कहा, अगर वैज्ञानिक तरीके से सुरंग निर्माण किया जाए तो निश्चित तौर कोई हादसा नहीं होगा। उन्होंने पहाड़ों में सुरंगों को ही सबसे सुरक्षित सड़कों का विकल्प बताया। कहा, हिमालय की चट्टानों के बीच काम करने के लिए आपको फील करना जरूरी है। हर कदम पर चट्टानों का मिजाज बदल जाता है। कहीं कठोर हैं तो कहीं भुरभुरी। इसी हिसाब से निर्माण भी होने चाहिए। सिलक्यारा सुरंग में भी इसी प्रकार निर्माण संबंधी चूक से हादसा हुआ था।

ढली टनल को बेस्ट टनल अवार्ड

इस कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश के शिमला में बनी 147 मीटर लंबी ढली टनल को बेस्ट टनल अवार्ड दिया गया है। यह पहली ऐसी सुरंग है, जिसके निर्माण किसी भी विस्फोटक पदार्थ का प्रयोग नहीं किया गया है। जिसके लिए साईं इटरनल फाउंडेशन को सम्मानित भी किया गया है।

सैटेलाइट इमेज से लाइन खींचना खतरनाक

कॉन्फ्रेंस के दौरान विशेषज्ञों ने ये भी कहा कि कई कंपनियां व अधिकारी सीधे सेटेलाइज इमेज देखकर उसपर एक लाइन खींच देते हैं और अपनी भावी योजना बना देते हैं। पर वे इस माध्यम से धरातल की भूगर्भीय परिस्थितियों से अनजान रहते हैं। हमने देखा है रेलवे और सड़क के कई ऐसे प्रोजेक्टों को जो बाद में मुश्किलें पैदा कर देता है। उनका मानना है कि यह घातक है।

वाइब्रेशन को करे मॉनिटर

उत्तराखंड के कई इलाकों में चल रहे सुरंग के प्रोजेक्ट में कई गांवों में दरारें आने की शिकायतें आम हो रखी हैं। विशेषज्ञ बीडी पटनी का मानना है कि जहां भी सुरंग निर्माण हो रहा हो, उसके ऊपर गांव में वाइब्रेशन मॉनिटर लगाना जरूरी है। इस मॉनिटर में अगर वाइब्रेशन पांच से ज्यादा हैं, तो तत्काल बारूद की मात्रा कम को कम करना पड़ता है और नजरअंदाज किया तो इसके परिणाम घाटक हो सकता है।

डीपीआर सतही रूप पर केवल

विशेषज्ञों का कहना है कि आजकल बनने वाले प्रोजेक्ट की डीपीआर बेहद सतही होती है। इस वजह से निर्माण के दौरान हादसे हो रहे हैं। सस्ते व नौसिखिए इंजीनियर, जियोलॉजिस्ट से आननफानन में मिले डाटा के आधार पर बनी डीपीआर दुखदायी होती है। ऐसे तमाम प्रोजेक्ट हैं, जिनकी खामियां सामने आ रही हैं।

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें गूगल न्यूज़, फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...