उत्तराखंड के पंचकेदारों में प्रतिष्ठित श्री मद्महेश्वर मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए 20 नवम्बर को विधिपूर्वक बंद कर दिए गए हैं। इस अवसर पर मंदिर को पूरी तरह से फूलों से सजाया गया था। वहीं अलौकिक अवसर पर मंदिर में श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा भी देखने को मिला।
मद्महेश्वर (Madmaheshwar) मंदिर का महत्त्व
श्री मद्महेश्वर मंदिर जो पंचकेदारों में दूसरे स्थान पर है, उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के माढ़ा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ पर भगवान शिव के रूप में पूजे जाने वाले मद्महेश्वर जी के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। खासकर केदारनाथ यात्रा के दौरान जिससे इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है।
हर वर्ष शीतकाल के लिए बंद किए जाते हैं कपाट
मंदिर का यह कपाट हर वर्ष शीतकाल के दौरान बंद कर दिए जाते हैं, जिसके साथ विशेष धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं। इस साल भी, श्रद्धालुओं का हुजूम इस पावन अवसर का हिस्सा बनने के लिए भारी संख्या में पहुंचे और मंदिर में पूजा-अर्चना भी की।
फिर 20 नवम्बर को सुबह विशेष मुहूर्त में मंदिर के कपाट को शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस कार्यक्रम में मंदिर को भव्य रूप से फूलों से सजाया गया था, जिससे वातावरण अत्यधिक आकर्षक और श्रद्धापूर्वक लग रहा था।
कपाट बंद करने की प्रक्रिया में, भगवान मद्महेश्वर जी के स्वयंभू शिवलिंग को श्रद्धा और भक्ति के साथ समाधि स्वरूप में ढक दिया गया है। इस प्रक्रिया में पुष्प, फल-पुष्प और अक्षत का इस्तेमाल किया गया है।
इन सब कार्यक्रमों और आयोजनों के बाद भगवान मद्महेश्वर जी की उत्सव की डोली, देव निशानों और स्थानीय वाद्य यंत्रों की ध्वनि के बीच गौंडार की ओर प्रस्थान कर गई। इस आयोजन में ढाई सौ से अधिक श्रद्धालु उपस्थित रहे। बता दें कि मंदिर में प्रातःकालीन पूजा-अर्चना के बाद कपाट बंद करने का यह महत्वपूर्ण कार्य पूरा किया गया।
18,000 से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) के मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने जानकारी दी कि इस वर्ष 18,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने श्री मद्महेश्वर जी के दर्शन किए हैं। यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में अधिक रही जो दर्शाता है कि श्रद्धालुओं में धार्मिक स्थल के प्रति श्रद्धा और आस्था में निरंतर वृद्धि हुई है। BKTC के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय और उपाध्यक्ष किशोर पंवार ने इस पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दीं और आयोजन की सफलता पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
शीतकालीन यात्रा का आगाज़
20 नवम्बर को कपाट बंद होने के साथ ही भगवान मद्महेश्वर जी की डोली गौंडार पहुंची, जहाँ रात्रि विश्राम के बाद यह डोली 21 नवम्बर को राकेश्वरी मंदिर में प्रवास करेगी। 22 नवम्बर को गिरिया में विश्राम होगा और फिर 23 नवम्बर को शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ अपने गंतव्य मंदिर में पहुंच जाएगी। फिर उखीमठ में शीतकालीन पूजा-अर्चना का शुभारंभ होगा, जो पूरी सर्दी के मौसम में जारी रहेगा।
मद्महेश्वर मेले की तैयारियां
23 नवम्बर को जब भगवान मद्महेश्वर जी की डोली उखीमठ पहुंचेगी, तो वहां मद्महेश्वर मेले का आयोजन किया जाएगा। इस मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। इस मौके पर श्री ओंकारेश्वर मंदिर को फूलों से सजाया जा रहा है और पूजा-अर्चना का विशेष आयोजन किया जाएगा।
यज्ञ-हवन और पूजा की प्रक्रिया
कपाट बंद होने से एक दिन पहले यानी 19 नवम्बर को मंदिर में विधिपूर्वक यज्ञ-हवन का आयोजन किया गया था। इस धार्मिक अनुष्ठान के बाद, 20 नवम्बर को सुबह 4:30 बजे मंदिर के द्वार खोले गए। इसके बाद प्रातःकालीन पूजा-अर्चना के बाद भगवान मद्महेश्वर जी के दर्शन का अवसर श्रद्धालुओं को प्राप्त हुआ। इसके बाद कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू की गई।
प्रतिष्ठित लोग रहे मौजूद
इस अवसर पर मंदिर समिति के सदस्य और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी मंदिर में आकर श्रद्धा भाव से पूजा की और भगवान के सामने नतमष्तक होकर प्रार्थना की। इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने वालों में BKTC के प्रभारी अधिकारी यदुवीर पुष्पवान, पुजारी टी. गंगाधर लिंग, मंदिर समिति के कर्मचारी पारेश्वर त्रिवेदी, दिनेश पंवार, अनिल बर्त्वाल, पंचगाई हक-हकूकधारी, वन विभाग के कर्मचारी और बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद थे।
This Post is written by Abhijeet Kumar yadav